जब हवा चलती है तो हमारे देश की रेत राजस्थान के रास्ते दूसरे देश की सीमा में समा जाती है। इसी तरह ही कुछ सिरफिरे नौजवान सेना के जवानों को चकमा देकर एक देश की सीमा से दूसरे देश की सीमा में शामिल हो जाते हैं। पुलिस, सरकारें और सेना के जवानों की आंख में धूल झौंककर कुछ जुनूनी क़ातिल हैं जो सरहद पार से आते हैं और अपने दुश्मन का सर काटकर अपने साथ ले जाते हैं और छोड़ जाते हैं तो सिर्फ तड़पता हुआ अपने दुश्मन का धड़।
तीन बदनसीब इंसान जिनका जिक्र राजस्थान में आज भी किया जाता है। ठीक उस रेगिस्तानी डाकू कर्ना भील की तरह जिसको रॉबिन हुड की पदवी और उसकी मूंछ के कारण तो याद किया ही जाता है पर सबसे ज्यादा याद किया जाता है उसकी कब्र को जो कि एक शमशान में १७ साल से इंतजार कर रही है चिता का। ठीक कर्ना भील की तरह ही दुश्मन इन तीन बदनसीबों का सर काटकर, अपने साथ सरहद पार लेगए थे और दे गए थे जख्म, इंतजार का, उस परिवार को अपनी दुश्मनी याद रखने का और जिंदगी पर तड़पने का।
राजस्थान के पश्चिमी जैसलमेर के बीदा गांव में कुछ ऐसा ही वाक्या हुआ। दो नौजवान खेमर सिंह, खुमान सिंह गांव से अपने साथ कुछ भेड़ों को लेकर सरहद पर चराने के लिए गए थे। साथ ही उनके था १२ साल का जुगत सिंह। अमूमन तो ये लोग दो तीन दिन बाद ही सरहद से भेड चरा कर लौटते थे। जब इस बार चार-पांच दिन बाद भी ये नहीं लौटे तो गांव वाले पुलिस के साथ उनको ढूंढते हुए सरहप पर पहुंचे। काफी ढूंढने के बाद तीन शव मिले लेकिन तीनों के सर गायब थे। कपड़े और कद काठी से पता चल गया कि ये खेमर, खुमान और जगत की लाशें हैं।
तफ्तीश से पता चला कि इस परिवार की पुरानी रंजिश पाकिस्तान के कुछ लोगों से थी। मौका पाकर उन्होंने पाकिस्तान से आकर इन तीनों का सर कलम कर दिया और साथ ही सर भी अपने साथ लेगए। एक ही परिवार के तीन लोगों के धड़ जैसलमेर से सटी भारत की सीमा पर पड़े मिले। उनके दुश्मन उनका सिर काटकर अपने साथ ले गए थे। पहले सरहदों पर तार यानी सीमा पर कटीले तार नहीं हुआ करते थे, तो ये लोग सरहद पार आसानी से चले जाया करते थे। ऊंटों में सवार ये अपराधी जैसे आए थे वैसे ही वापस चले गए और पीछे छोड़ गए सिर्फ दो शब्द “चांद मुजरा”।
बीदा गांव के लोगों ने आधे-अधूरे शरीर को चिता पर लिटा तो दिया पर रस्मों के हिसाब से वो उस चिता में अग्नि नहीं दे सकते थे। मुख ना होने के कारण मुखाग्नि कोई कैसे देता। तो गांव वालों ने तीन पुतलों के सर रखकर अपने आप को बहला लिया। लेकिन ये टीस उनको सालने लगी।
गांव वालों के गुस्से को देखते हुए पुलिस ने क़ातिलों तक पहुंचने की पूरी कोशिश की मगर सरहद पार से कातिल को पकड़ कर लाना दो थानों की बात नहीं थी, ये दो मुल्कों की बात थी। सो ना क़ातिल पकड़ा जाना था और ना ही क़ातिल पकड़ा गया। मालूम नहीं इन सरहदों के बीच ये सर और सरहद का रिश्ता क्यों है।
आपका अपना
नीतीश राज
"जय हिन्द, फिर मिलेंगे"
1 year ago