अभी तक आप ने पढ़ा--
सालम सिंह की नजर इस कुलधरा गांव की एक सुंदर लड़की पर जा पड़ी। 50 साल के सालम सिंह को वो पसंद आ चुकी थी वो इतना उतावला हुआ कि सब भूल गया, बस वो हासिल करना चाहता था कुलधरा गांव की उस इज्जत को। किसी भी तरह से उस चाहिए तो वो सुंदरी अपने हरम में।
सालम सिंह ने अपना संदेशा उस परिवार तक पहुंचा दिया जिस घर की वो सुंदरी थी। सालम सिंह ने बस्ती के लोगों को पूर्णमासी की रात तक फैसला करने की मोहलत दी। इसी मोहलत के साथ साथ सालम सिंह की धमकी भी थी कि पूर्णमासी की अगली सुबह बस्ती पर धावा बोलकर लड़की को उठा के ले जाएगा। गांव वालों ने मोहलत पर कम और धमकी पर ज्यादा गौर किया। ये सब वो ब्राह्मण गांव के लोग सहन नहीं कर सके। सभी 84 गांवों ने मिलकर एक जगह पर बैठक की। एक ब्राह्मण की बेटी को उस अधेड़ दीवान के सुपुर्द करना उनकी गैरत के खिलाफ था। सभी 84 के 84 गांव के लोग कुलधरा में मंदिर के पास इक्टठा हो गए। ब्राह्मणों की पंचायत हुई, पंचायत में एक आवाज पर फैसला होगया। 84 गांव के हजारों लोगों की एक ही आवाज़। कुछ भी हो जाए अपनी बेटी को उस अधेड़ के सुपुर्द नहीं करेंगे। चाहे उसकी कितनी बड़ी कीमत क्यों ना चुकानी पड़े।
फैसला हो चुका था। ब्राह्मण की लड़की की इज्ज़त बचाने के लिए 84 के 84 गांव फौरन सुबह का इंतजार किए बगैर ही जैसलमेर की रियासत से कहीं दूर निकल जाएंगे। एक ही रात में भरा पूरा गांव खाली हो गया। पर वो अपना धर्म नहीं बेचेंगे, वो अपनी लड़की की इज्ज़त को नहीं बिकने देंगे। 84 के 84 गांव के लोग एक ही रात में जैसलमेर जिला छोड़कर कहीं दूर चले गए। मगर जाते जाते ये बस्ती वाले इन गांवों को ये श्राप भी दे गए कि दोबारा कभी इन घरों में कोई बस नहीं पाएगा। जो गए वो कभी यहां पर लौट कर नहीं आए।
वक्त गुजरने के साथ कुछ लोगों ने और सरकार की तरफ से भी इन उजड़ी बस्तियों को बसाने की कोशिश की गई मगर तमाम कोशिशें नाकामयाब ही रहीं, ये गांव कभी आबाद नहीं हो पाए। उनका दिया श्राप आज भी इन गांवों को बसने नहीं देता। जो भी यहां बसने के लिए गया पूरे के पूरे परिवार पर आफत ही टूट पड़ी। ऐसी विपत्ति आती की किसी की जान लेकर ही जाती। घर का कोई ना कोई मरता जरूर।
सरकार की ये कोशिश तो असफल रही पर सरकार ने दूसरी कोशिश जरूर शुरू कर दी है। इन तमाम गांवों की घेराबंदी कर दी गई है। सदर दरवाजे पर चौकीदार को बैठा दिया गया है। गांव तो ना आबाद हुआ और ना ही कभी आबाद होगा पर उजड़ने के बाद भी ये गांव पर्यटकों की जेबों से पैसे निकालकर सरकार की झोली जरूर भर रहा है। घर की बहू-बेटी की इज्ज़त की खातिर जो मिसाल इन पत्थरों में रहने वाले गांव वालों ने दी है उस की मिसाल कभी दूसरी मिल ही नहीं सकती। वो पत्थर जो बिखरा तो है पर टूटा अब भी नहीं।
आपका अपना
नीतीश राज
(अगली बार एक और ऐसी ही रोचक और सच्ची कहानी के साथ, पढ़ना जरूरी है)
"जय हिन्द, फिर मिलेंगे"
2 years ago
10 comments:
Neeteeshji, kahani ka pahla bhag nahin padha tha phir bhi poora saar dusare bhag se bhi pata chal gaya. achhi etihasik ghatna ka jikra kiya hai aapne. jaankari wali post. dhanywad.
दोनों अंक आज ही पढ़ा। पढकर लगा कि एक लड़की की इज्जत के नाम पर 84 गॉव के हजारों लोग क्या अपनी जमीन जायदाद छोड़कर जा पाए होंगे। लेकिन मिसाल से भी हौसला तो मिलता ही है कि एक स्त्री की इज्जत इनसे ज्यादा कीमती है, बल्कि अनमोल है।
एक बात तो तय हो जाती है कि हमरा वर्तमान भले ही अच्छा ना नज़र आये लेकिन हमारा इतिहास वाकई स्वर्णीम रहा है। अच्छी और सच्ची पोस्ट्। बहुत बहुत बधाई
बेटी सबकी सांझी होती है ...बहुत ही बढ़िया कदम लिया सबने ..इस तरह से और कहानियां सामने लायें .
शुक्रिया इसको यहाँ बेहतरीन ढंग से पोस्ट करने के लिए
बहुत ही अच्छी बात बताई आप ने ,हाम्रे बुजुर्गो ने आज तक कुछ भी गलत नही किया, ओर आज की यह नयी पीढी कुछ भी अच्छा नही कर रही, स्त्री खुद को प्रधान समझ रही हे,
धन्यवाद
Got some interesting stuff going on here. Unfortunately I can't read it.
पढ़कर रोमांच भी हुआ और आश्चर्य भी, विरोध का अनोखा तरीका. यदि यही ८४ गाँव के लोग अपने हाथों में डंडे, भाले या फरसे लेकर उस दीवान का मुकाबला करने निकलते तो उसकी सात पीढियां भी किसी कन्या पर बुरी नज़र न डाल पातीं!
bhai smart indian wo raja tha army badi aur 84 gao ke kitne log
atyany sundar... rajsthan ki lokgathao pr bhi prkaash dale.. vartmaan peedhi ka humare swarnim itihaas janna ati aavshyk h....
uttam pryaas
shubhkamnaae
सुखद-आश्चर्य -मन गौरवान्वित हुआ।
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