Sunday, August 17, 2008

“नहीं, नहीं...मैंने क़त्ल नहीं किया”-भाग 2

अब यहां से आगे...

उसके नजदीक आते के साथ ही मेरी किक उसके जबड़े पर पड़ी और वो अपने मुंह पर हाथ रख पीछे की तरफ गिरा। उसके मुंह से खून की धारा फूट पड़ी। मेरी किक लगी भी ठीक जगह पर थी, साथ ही जानदार तरीके से भी। वो मुंह पर हाथ रखे जमीन पर सीधा गिरा पड़ा था। मैंने तेजी दिखाई और उसकी तरफ लपका और मेरा दूसरा निशाना सीधे उसके पेट के नीचे था। तभी दो लड़के उन लोगों को छोड़कर मेरी तरफ लपके। उनमें से एक तो मेरी तरफ आया और दूसरा अपनी खड़ी स्कोर्पियो की तरफ बढ़ गया। मुझे एहसास हो चला कि दूसरा बंदा हथियार निकालने के लिए गाड़ी की तरफ बढ़ा है। लोगों का हुजूम बढ़ रहा था और सब ये देख रहे थे। जैसे कि किसी फिल्म की शूटिंग चल रही हो।
मेरे सामने अब ये करीब 18-19 साल का लड़का था। देखने से ही लग गया कि ये फुर्ती में मुझपर भारी पड़ेगा। उसने सीधा घूसा मेरी नाक पर जड़ दिया लेकिन यहां हल्की सी तेजी मैंने दिखा दी, नहीं तो मैं भी उसी समय लहूलुहान हो चुका होता। मैं जल्दी से अपने चेहरे को थोड़ा सा साइड कर दिया। उसी कारण से उसका घूसा मेरी नाक को छोड़ कनपटी पर पड़ा। मैं दर्द से कराह तो गया लेकिन उतनी ही तेजी से मेरे दाएं पैर का घुटना उसकी छाती और पेट के बीच वाले उस कमजोर हिस्से पर लगा बिल्कुल हॉलो प्वाइंट पर। घुटने की ताकत और सही जगह पर पड़ने के कारण उस लड़के की चीख तक नहीं निकली। बिना कुछ किए वो लड़का चुपचाप नीचे बैठ गया। ये घातक वार मैंने डिस्कवरी चैनल के एक एपिसोड से सीखा था।
वो आदमी जो गाड़ी से हथियार निकालने गया था। ठिठका हुआ सा देख रहा था। वो तुरंत गाड़ी की तरफ भागा। वो समझ चुका था कि मेरा सामना वो नहीं कर पाएगा और मेरे लिए वो गाड़ी में पड़े सामान का ही सहारा लेना चाह रहा था। मैं भी लपक लिया उसी दौरान जितने बाकी बचे थे उनमें से दो भी मेरे पीछे लपके। गाड़ी की ड्राइविंग साइड की दूसरी तरफ का दरवाजा खोल कर वो आदमी नीचे खड़ा डेशबोर्ड की तरफ से कुछ निकाल रहा था। ये मौका मैं गवाना नहीं चाहता था। मैं दौड़ा, वो बाहर निकल रहा था, मैं सीधे दरवाजे पर कूद गया और उसके पैर और मुंह से आवाज़ें एक साथ फूटपड़ीं। मैं समझ गया कि इसका तो काम हो गया। पैर की कोई हड्‍डी बाप-बाप चिल्लाते हुए टूट चुकी थी। वो दोनों लड़के मेरे नजदीक आ रहे थे। उनके चेहरे गुस्से में बहुत बुरे लग रहे थे। मैं भी तैयार था उन दोनों से एक साथ भिड़ने के लिए।
तभी कुछ लोहे जैसी चीज के गिरने की आवाज सुनाई दी मुझे। जो आदमी गाड़ी के दरवाजे पर अभी तक अटका पड़ा था वो धम से सड़क पर बैठ गया। उसके हाथ में कुछ था जो कि सड़क पर जब गिरा तो हल्की सी आवाज़ हुई और वो मैंने सुन ली। उस आदमी ने उस चीज को संभालते हुए, बैठे-बैठे ही गाड़ी का दरवाजा बंद कर दिया। अब मुझे साफ दिख रहा था कि उसके हाथ में पिस्तौल थी। मैंने जिंदगी में कभी भी पिस्तौल, बंदूक नहीं देखी। उसने पिस्तौल का मुंह मेरी तरफ करना शुरू किया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मैं समझ चुका था कि मुझे क्या करना है। यदि पिस्तौल के गिरने की आवाज़ मैंने नहीं सुनी होती तो शायद मैं ये सोच नहीं पाता जो कि मैं सोच गया था।
उसका हाथ जब तक मेरी तरफ उठता एक फ्लांग मारकर मैं खुद उसका पिस्तौल वाला हाथ थाम चुका था। इसी गुथ्था-गुथ्थी में एक फायर भी हो गया और गोली सामने खड़े उन दोनों लड़कों में से एक के जिस्म में धसती चली गई। वो एक चीख के साथ पीछे की तरफ धड़ाम से गिर गया। वहां पर हलचल मच गई। लेकिन तभी दूसरी गोली भी चली और दूसरे लड़के के सर में जा धंसी। वो लड़का पहले वाले लड़के को नीचे झुक कर देख रहा था वहीं उसी के ऊपर ही लुढ़क गया। इनके साथी और वो दोनों जो कि पिट रहे थे अवाक से इस घटना को होते हुए देख रहे थे। हर तरफ बिल्कुल सन्नाटा था। तभी तीसरी गोली के चलने की आवाज़ आई, लेकिन इस बार अब तक शांत खड़ी भीड़ इधर-उधर तितर-बितर होने लगी। हर जगह से चीख ही चीख सुनाई दे रही थे। मुझे समझ में नहीं आया कि तीसरी गोली चल तो गई थी लेकिन गई कहां और लगी किसे। मैंने उसके हाथ को अपनी गिरफ्त में कसा हुआ था। बहुत देर से हम एक दूसरे से जूझ रहे थे। मैं कोशिश कर रहा था कि मेरे हाथ से उसका हाथ छूट ना जाए। अब की बार मैंने उसकी कलाई मोड़ दी और गोली उसकी जांघ में छेद कर चुकी थी और वहां से फूटा खून का फव्वारा मेरे हाथ रंग चुका था।
कभी मैं अपने हाथों को देखता कभी वहां पर खड़े रह गए लोगों की आंखों में। मेरी आंखें उनसे सवाल करती। क्या मैं गुनहगार हूं? क्या मैं क़ातिल हूं? सबकी शांत आंखें कई बार तो चुगली कर रही थी कि हां, कि लाशें तो पड़ी हैं तो क़त्ल तो हुआ है। लेकिन मेरी आत्मा कह रही थी नहीं...मैंने क़त्ल नहीं किया, मैंने क़त्ल नहीं किया, नहीं...नहीं...मैंने क़त्ल नहीं किया। मेरे में इतनी हिम्मत कहां से आ सकती है कि मैं किसी का क़त्ल कर सकूं। मैं चीख रहा था और मेरी चीख लगातार बढ़ती जा रही थी।
पत्नी ने झकझौड़ा, और मैं नींद से जाग गया। पत्नी ने आग्रह रूप में कहा कि, क्यों एक ही बात को बार-बार सोचते हो। मैं अपने हाथों को देखता कि कहीं खून लगा तो नहीं हुआ है और सोचता कि क्या मेरे में इतनी हिम्मत आ सकती है। ये ही सोचते सोचते एक अंतिम बात ध्यान आई, कि तीसरी गोली इन्हीं के साथी को जो कि ऑटो वाले को पीट रहा था उसके पेट में लगी थी और वो ऑटो पर जाकर हमेशा के लिए टिक गया था।

(यहां पर आप को ये बताना चाहता हूं कि ये पूरा वाक्या मेरे साथ एक रोज हुआ था। बस उसमें थोड़ा से फेरबदल ये है कि जब मैं बाइक से उतरा और उन से लड़ने लगा तो एक दो लोगों ने भी थोड़ी मदद की और साथ ही कुछ ने पुलिस को फोन भी कर दिया। जब वो शख्स पिस्तौल निकाल रहा था तब तक पुलिस आ गई और उसने उन लोगों के साथ मुझे भी थाने चलने के लिए कहा था। लोगों के कहने पर उन गुंडों को हिरासत में ले लिया गया। लोगों के साथ मैंने भी रिपोर्ट दर्ज कराई। जब मैंने अपने बारे में पुलिस को बताया तो फिर छोड़ने में उन्होंने देर नहीं की। लेकिन मुझे हमेशा ही ये लगता रहा कि इन जैसे दरिंदों की समाज को क्या जरूरत है। ये इतनी सी बात के लिए इतना बड़ा कदम उठा लेते हैं और साथ ही अपनी हार इन्हें गवारा ही नही, इन्हें हथियार तक का सहारा लेने से कोई भी गुरेज नहीं। तो कई बार दिमाग कहता है कि यदि तब पुलिस नहीं आई होती और उसके आगे कुछ हुआ होता तो ये ही हुआ होता जहां पर मेरा सपना खत्म होता है। इसलिए बहुत बार मैं इस घटना को सपने के रूप में देख चुका हूं। मैंने सोचा कि अपने इस नासूर बन चुके सपने को आप को भी बताऊं, जब भी कुछ उल्टा सीधा देखता हूं तो ये सपना मुझे रात में आकर सताता है। पता नहीं भुलाए नहीं भुलती ये घटना।)

आपका अपना

नीतीश राज

12 comments:

Anil Pusadkar said...

aksar aisa hota hai chetan avchetan par havi ho jata hai,sahi kiya aapne us gubar ko nikal diya warna wo nasoor bata hi.aap jaisi himmat ki aaj samaj ko zaroorat hai kyonki bhay aur sahas dono sankramak hai.agar bhay teji sr failta hai to sahas bhi.ek gunda bhid ko dhamkaata chamkaata rehta hai aur safal bhi rehta hai magar bhid se ek bhi aadmi khilaf khada hota hai to mahaul badal jaata hai.badhai aapko ek prerak prasang ko rochak tarike se present karne ki

PREETI BARTHWAL said...

गुस्सा लोगों के सर पर चढ कर बोलता है। शायद गुस्सा ही सबसे बङी जङ है ऐसी घटनाओं के।
नितीश जी अच्छा लिखते हैं। बधाई स्वीकारें

राज भाटिय़ा said...

नीतिश जी,लेकिन मेरी आत्मा कह रही थी नहीं...मैंने क़त्ल नहीं किया, मैंने क़त्ल नहीं किया, नहीं...नहीं...मैंने क़त्ल नहीं किया। आप की आत्मा सच कह रही हे, आप ने तो एक अच्छा काम किया हे, काश सभी नागरिक ऎसा करे तो गुण्डा गर्दी अपने आप हट जाये.
धन्यवाद

Anonymous said...

ये घटना तो अब मुझे भी नही भूलेगी।
पता नही आपने कैसे सामना किया
सोच कर मन सिहर जाता है…

सचिन मिश्रा said...

kash sabhi aaisa karte

Smart Indian said...

आपके साहस की दाद देनी पड़ेगी. वरना तो आजकल भारत में दूसरे के लिए गुंडों के सामने आने वाले एक खोई हुई नस्ल के प्राणी हो गए हैं.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

आपके जज़्बे को सलाम। ऐसा हौसला हो तो ये गुण्डे सड़क छोड़ दें...।

डा ’मणि said...

सादर अभिवादन नीतीश जी
पहले तो हिन्दी ब्लॉग्स के नये साथियों मे आपका बहुत स्वागत है
दूसरे आपकी इस सशक्त रचना के लिए बधाई

चलिए अपने परिचय के लिए , अभी एक गीत मैने अपने ब्लॉग पे डाला ही उसकी कुछ पंक्तियाँ भेज रहा हूँ
देखिएगा
तुम कभी मायूस मत होना किसी हालात् में
हम चलेंगे ' आखिरी दम तक ' तुम्हारे साथ में

है अँधेरा आज थोड़ा सा अगर तो क्या हुआ
आ गयी कुछ देर को मुश्किल डगर तो क्या हुआ
दर्द के बादल जरा सी देर में छँट जायेंगे
कल तुम्हारी राह के पत्थर सभी हट जायेंगे

चाहते हो जो तुम्हें सब कुछ मिलेगा देखना
हर कली हर फूल कल फ़िर से खिलेगा देखना
फ़िर महकने - मुस्कुराने सी लगेगी जिंदगी
फ़िर खुशी के गीत गाने सी लगेगी जिंदगी

घोर तम हर हाल में हरना तुम्हारा काम है
"दीप "हो तुम रौशनी करना तुम्हारा काम है
पीर की काली निशा है आख़िरी से दौर में
अब समय ज्यादा नहीं है जगमगाती भोर में

देख लो नजरें उठाकर ,साफ दिखती है सुबह
देख लो अब जान कितनी सी बची है रात में

तुम कभी मायूस मत होना किसी हालात् में
हम चलेंगे ' आखिरी दम तक ' तुम्हारे साथ में

आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा मे
डॉ . उदय 'मणि'
http://mainsamayhun.blogspot.com
(मेरे ब्लॉग पे भी आपका सहृदय स्वागत है , और यदि आपको ब्लॉग समर्थ और सार्थक लगे तो इसे अपनी ब्लॉग लिस्ट मे शामिल कीजिए अतिप्रसन्नता होगी ..)

Nitish Raj said...

बहुत बहुत धन्यवाद आप सब का, और डॉ अमर आप की कविता बहुत उत्साहबर्धक है मेरा हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद।

बालकिशन said...

बहुत ही अच्छा लिखते है आप.
पढ़कर अच्छा लगा.
बधाई

डॉ .अनुराग said...

अनिल जी ठीक कहा है........इस मुद्दे पर
आप अच्छा लिखते है.......

Advocate Rashmi saurana said...

bhut hi marmsparshi lekh likha hai aapne.