Friday, August 29, 2008

अपना एक अड्डा

जब से दिल्ली आया तब से ही रात के समय में कुछ अड्डों के बारे में सुना। जब चाहो, जितना चाहो, जो चाहो मिल जाता है। नाइट शिफ्ट लगने लगी तो ख्याल इन अड्डों का आया और फिर ये अड्डे ध्यान में रखने पड़ते। कभी शाम को काम से फुरश्त नहीं मिलने पर, भूखे पेट को देर रात में इनहीं का सहारा रहता। आईआईटी गेट पहले बहुत जाना हुआ करता था। कभी आश्रम फ्लाईओवर, HYATT होटल, निजामुद्दीन, जामा मस्जिद, पंडारा रोड और भी कई जगहें। पर जब से नोएडा कर्मभूमि हुई तब से दूरी की वजह से वहां जाना नहीं हुआ करता था। फिर इधर ऐसे ही किसी अड्डे को ढूंढने का सिलसिला शुरू हुआ।
यहां पर आनंद विहार बस अड्डे के ठीक सामने वो अड्डा या यूं कहूं कि ठिया मिल गया जो कि हमारे हिसाब से बिल्कुल सही था। लेकिन ये दिल्ली में नहीं है क्योंकि रोड के उस पार बस अड्डा है और रोड के इस पार यानी गाजियाबाद, यूपी में ये ठिया है। यहां पर कुल मिलाकर १२-१५ दुकानें होंगी और सारी रात खुली रहती हैं। यहां पर खाने-पीने के मामले में सब कुछ मिलता है, देर रात तक नहीं सुबह तक। जब भी रात में कुछ भी खाने की इच्छा होती तो बाइक का रुख यहां की तरफ कर देते। आठ साल से तो मैं देख रहा हूं, उसके पहले का मुझे पता नहीं, पर ये जगह वैसी की वैसी ही है। ऐसा नहीं कि ये कनॉट प्लेस की तरह है पर रात में जब जाम छलकाने का मन होता है तो सब से ज्यादा भीड़ शायद यहीं पर लगती है। और ये जगह रात में तो सिर्फ पीने के लिए ही जानी जाती है।
देर रात खाने-पीने के अलावा ये जगह रात में इतनी गुलजार इस लिए भी रहती है क्योंकि दोनों तरफ मॉल बने हुए हैं। रात भर बसों का आना-जाना लगा रहता है। साथ ही पीने वालों की तो बात ही निराली। लेकिन यहां का एंबियंस काफी अच्छा है, सिर्फ पुरुषों के लिए। ओपन एयर रेस्त्ररां जैसा माहौल, वहां बैठ कर डिनर कीजिए, गैस की जो लालटेन और साथ ही सिलेंडर के जरिए रोशनी होती है। वैसे कई जगहों पर बल्ब भी हैं। किसी ना किसी ऑटो में गाने बजते रहेंगे। यदि उसमें नहीं बज रहे तो फिर किसी गाड़ी से सुनाई पड़ जाएंगे। बैचलर्स और पार्टी टाइम के लिए तो बिल्कुल सही जगह।
ऐसा नहीं कि गाजियाबाद में ये सब जायज है पर जब थानेदार को हफ्ता मिलता रहता है तब तक पूरी रात दुनिया के सामने यहां जाम से जाम टकराए जाते हैं। जब कि इसके बगल में है कौशांबी। गाजियाबाद में पहली मल्टीस्टोरी बिल्डिंग, जिसके चर्चे १९९२-९३ से हुआ करते थे, पर चाह करके भी वो कुछ नहीं कर सकते। पर जब भी हफ्ता या महीना जो भी फिक्स होता है वो नहीं पहुंचता तो ये जगह सुनसान हो जाती है। वैसे हम ऑफिस के कुछ साथी हमेशा यहां पर जमते, साथ ही कभी कभी दोस्त भी। फिर शुरू हो जाता सिलसिला साहित्य, गानों, क्रिकेट, शेयर, राजनीति, देश ना जाने कितने ही विषयों पर बैठकर हमलोग चर्चा करते। यहां के कई किस्से कहानी हैं और कुछ दिलचस्प मामले तो मेरे सामने हुए हैं। पीने के बाद की नौटंकी यहां अधिकतर देखने को मिलती है। और यहां से ही कई पोस्ट के प्लॉट भी मिल जाते हैं। इनके बारे में सब बातें अगली पोस्ट में।

जारी है...

आपका अपना
नीतीश राज

12 comments:

Udan Tashtari said...

इस तरह के अड्डे हर शहरों की शान होते हैं-बड़ी रोचक प्रस्तुति रही. कुछ कुछ ऐसी ही यादों में डूब लिए कुछ देर को. :)

Anonymous said...

मतलब आपको इसके लिये हफ़्ता वारी का शुक्रगुजार होना पड़ेगा।

DEEPAK NARESH said...

जियो मेरे शेर.. बहुत सही जा रहे हो ..सब यार मिलकर पीटेंगे..समझे....

समयचक्र said...

इन अड्डो में समय गुजारने का एक अपना अंदाज होता है .

Anil Pusadkar said...

yaaden taaza kar di aapne.achha likha

seema gupta said...

जब थानेदार को हफ्ता मिलता रहता है तब तक पूरी रात दुनिया के सामने यहां जाम से जाम टकराए जाते हैं।

" hmm so credit goes to haftaa vsulee han...... great to read"

Regards

रंजू भाटिया said...

सुना हुआ है इन सबके बारे में ..:) रोचक लगा अपने शहर का यह रूप जानना भी लिखते रहे

डॉ .अनुराग said...

tतो पुलिस वालो का शुक्रिया कहना चाहिए आपको........

Nitish Raj said...

अनूप जी, अनुराग जी इस पुलिसवालों को धन्यवाद तो देते ही हैं पर इनका दूसरा रूप भी आप को बताऊंगा अपनी अगली पोस्ट में। और दीपक नरेश तुम्हारे इस अड्डे के बारे में लिख रहे हैं पर यार पीटना मत। अभी तो पूरा लिखना बाकी है।

PREETI BARTHWAL said...

बङी रोचक जानकारी दें रहें हैं आगे भी लिखियेगा इंतजार रहेगा।

Manish Kumar said...

delhi ke in addon se roobaroo karane ke liye dhanyawaad

जितेन्द़ भगत said...

रोचक लगा। आगे लि‍खे का इंतजार रहेगा।