बचपन से ही सुंदर व आकर्षक वस्तुओं और जगहों को देखने का शौक मेरे को महानगरों की ओर खींचता था। जब भी महानगरों का जिक्र होता तो उत्सुक्तापूर्वक उस वाद-विवाद में कूद पड़ता और अपने आप को उसका हिस्सा बना लिया करता। शायद महानगरों को देखने का शौक, जिनके बारे में इतना सुना व देखा करता था, अंदर ही अंदर मेरी इच्छाओं को बढ़ाता हुआ अपनी ओर खींचता सा प्रतीत होता। मैं एक छोटी सी जगह में रहने वाला शख्स, जहां की आबादी इन महानगरों की आबादी का 2 या फिर 3 प्रतिशत से ज्यादा तो कतई नहीं होगी। वहां पर रहने वाला शख्स ‘शायद’ हमेशा ही महानगरों में जाना पसंद करे। असलियत से ना वाकिफ एकांत से निकलकर आबादी में आना चाहे। माना कि आज इसी आबादी से भागते हुए लोग छोटी जगहों की राह पकड़ रहे हैं। गोया आज से तकरीबन सोलह साल पहले सर्दी की खत्म होती एक दोपहरी में भारत के महानगरों के महानगर ‘दिल्ली’ में मैं अपना बोरिया बिस्तर लेकर आ गया।
वो खत्म होती सर्दी की एक दोपहर आज भी याद है। उस दोपहर को किस संज्ञा से संबोधित करूं शायद मेरे लिए यह समझ पाना आसान नहीं है। उस दोपहर को अपने जीवन की अच्छी दोपहरों में से एक कहूं या फिर बुरी। बाद के कई सालों तक मैं महानगरों की रातों में असमंजस में पड़ा अधिकतर इस बात को अंधेरे से भरे अपने कमरे में सोचता रहता था। सोचता था कि किस बात के कारण आज मैं अपने सगों को छोड़कर, अपने प्यारों को छोड़कर, यहां आया। क्या सिर्फ इस बात के लिए, कि आज जैसी ही किसी रात को अंधेरे से घुप कमरे में चटाई के ऊपर पड़ा इस बात का तोल-मोल करता रहूं कि कहीं मैंने भूल तो नहीं कर दी, मुझसे जिंदगी की सबसे बड़ी गलती तो नहीं होगई। इस कमरे में मेरे पास चटाई और घर से लाए दो-चार बर्तन, थैले में रखे कुछ जोड़ी कपड़े और मेरी सबसे कीमती धरोहर के रूप में एक ट्रंक भरी किताबें। इस महानगर में आए 7 साल बीत चुके थे तब तक इन्हीं ख्यालों के भंवर में फंसा रातों को अपनी आंखों को नम किए लेटा रहता था।
मुझे बचपन से ही कला जगत से प्यार था और 1992 में कला और संस्कृति की धरोहर माना जाने वाला ये शहर मुझे अकारण ही खींचता था। ये भी एक वजह थी कि महानगरों के राजा को मैंने अपने जीवन के लिए चुना। पहले दिन से ही मुझे अपनी तरफ खींचता, अपने में बांधता, अपने में समाता, अपने आकर्षण में कैद करता सा प्रतीत होता। शुरू से ही इसकी चमक-दमक ने मुझे प्रभावित किया। जैसा सुना था वैसा ही पाया भी। आलीशान इमारतें, बड़ी-बड़ी गाड़ियां, साफ-सफाई के साथ सुंदरता। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का गढ़, ऐतिहासिक धरोहर से परिपूर्ण जिसमें कुतुबमीनार, पुराना किला, स्वतंत्रता का प्रतीक लाल किला, इंडिया गेट, लोधी गार्डन, चांदनी चौक आदि। इन सब को देखने और इन के बारे में जानने को उत्सुक व इनसे जुड़े सपने लिए कुछ चंद महीने तो यूं ही निकल गए कि जिनका विवरण मेरे पास मौजूद भी नहीं। सिर्फ जुबान पर हमेशा याद रहता तो ...एक अकेला इस शहर में...।
जारी है.....
आपका अपना
नीतीश राज
"जय हिन्द, फिर मिलेंगे"
1 year ago
6 comments:
इस लेख से उन लोगों की यादें भी ताजा हो जाएंगी जो महानगर में इसी तरह कई सपनों के साथ आए थे और कहते हैं कि जो यहॉं आया, यहीं का होकर रह गया।
दिल्ली शहर का जादू अपने में समेट लेता है रोचक लगा ...
दिल्ली शहर का जादू अपने में समेट लेता है रोचक लगा .
बहुत खूब. हम भी कुछ साल आपके इस महानगर में रहे थे!
mahanagar ka anubhav wakai aisa hi hota hai..
आपको समर्पित करता हूं कि--
बीच-बिचाले महानगर के.
सपने आए केवल घर के.
गांव की पगडण्डी भी दिखती,
फुटपाथों पर उभर-उभर के.
----सादर-----------
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