Wednesday, September 3, 2008

अपना एक अड्डा-भाग २

आनंद विहार के इस अड्डे पर जैसे ही आप एंट्री करेंगे तो चार-छह लड़के तुरंत दौड़ते हुए आप के पास आजाएंगे। उनकी लिस्ट सुनेंगे तो हैरान रहे बिना नहीं रह सकेंगे, इतनी रात में भी इतना कुछ। सर, बताइए तो क्या लेना पसंद करेंगे। आप सोचेंगे कि गाड़ी आगे लगा लें कही पुलिस ने पकड़ लिया तो रात काली होने में देर नहीं लगेगी, फिर देते रहो पैसे। आप सोचेंगे कि इन लोगों की सैटिंग होगी इन पुलिसवालों से ये तो बच जाएंगे और आप फंस जाएंगे। हां, ये सच भी है कि इनकी सैटिंग होती है पुलिसवालों से, और इनका मानना है कि पुलिस हफ्ता लेती है तो वो इनके ग्राहकों को तंग भी नहीं करेगी। पर हरबार ऐसा होता नहीं है।
सबसे पहले होगी आप को अपनी तरफ खींचने की होड़। पर यहां अधिकतर वो लोग आते हैं जिनको पता रहता है कि किस जगह पर क्या और कैसा मिलता है। रेट में ये हमेशा ही गच्चा देते रहते हैं, ऐसे ही जैसे कि सरोजनी नगर आप जाएं तो मार्केट वाले। पर खास ये कि इस होड़ में कभी भी इन लोगों के बीच में लड़ाई मैंने तो नहीं देखी और ना ही सुनी है।
कई बार ज्यादा पीने के बाद यहां पर नौटंकी देखने वाली होती है। यहां बैठकर सिर्फ कान-आंख खुली रखिए। फिर देखिए क्या-क्या नजारे देखने को मिलते हैं। एक से बढ़कर एक फेंकूं तो पीने के बाद ही होते हैं। इस की बात फिर कभी।

हां, ऐसी जगहों पर पुलिस हमेशा आस-पास रहती ही हैं। एक तो गैरकानूनी, यदि कुछ लफ्ड़ा होगया तो फंसेंगे पुलिसवाले भी। पुलिसवाले कानून की आड़ में ही कानून का मजाक उड़ाते हैं। यहां देर रात में जब कोई भी गुट या फिर व्यक्ति विशेष ज्यादा आउट होने लगता है तो इन दुकानदारों के गठजोड़ के अलावा यहां की पुलिस का डर हमेशा लोगों के दिमाग में रहता है। ज्यादा पी लेने के बाद कई बार बदतमीजी होती हैं, ऐसी जगहों पर। तो उनकी सेवा भाव के लिए, पुलिस है ना, सदैव तत्पर-आपकी सेवा में उपलब्ध। कई बार तो लगता है कि पुलिस इनके लिए है हमारे लिए नहीं।
मैंने यहां ये भी देखा है कि कभी कोई पुलिस की गाड़ी आएगी और तुरंत यहां कि लाइटें बंद कर दी जाती है। लोग यहां-वहां हो जाते हैं। जो दिखता है उस पर पुलिस डंडे छोड़ देती है चाहे वो यात्री ही हो और बेचारा सिर्फ सुफियाने अंदाज में खाना ही क्यों ना खा रहा हो।
ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ। ये तकरीबन तीन साल पहले की घटना होगी। एक रोज ऑफिस से निकलते हुए देर होगई तो सोचा कि चलो खाना खाकर फिर घर का रुख करेंगे। रात के एक बजे के बाद का वक्त रहा होगा। जे. पी. जो कि अलीगढ़ का रहने वाला है यहां पर अपना स्टॉल लगाता है। जब भी खाना होता है तो, मैं यहां ही खाता हूं। जेपी तेल कम डालता है साथ ही थोड़ा साफ सफाई भी है और खाना बनाता भी दिल से है और उसके खाने में थोड़ा स्वाद भी है। मेरा खाना लगभग खत्म होने वाला था। तभी वहां पर पुलिस आगई। पुलिस अपने पुराने राग को अंजाम देने लगी, बरसाने लगी डंडे। मेरे बगल में बैठा था एक व्यक्ति जो कि एटा से आया था, जाना था मालवीय नगर। (ये घटना के बाद पता चला था) बस से उतरा सोचा कि पहले खाना खा ले फिर ऑटो करके घर चला जाएगा। वो खाना खा रहा था, उस की बैल्ट के नीचे डंडा लगा वो एकदम से कराह गया। उसका हाथ जहां का तहां रुक गया और मुंह का कौर मुंह से बाहर निकल आया। जितनों ने देखा सब का दिल धक्क से रह गया। मुझे तो लगा कि शायद ये प्रहार कहीं इस शख्स के प्राण ही ना ले उड़े। मैं बगल में था पुलिस वाले का हाथ फिर उठा और इस बार बारी मेरी थी। पर तभी जेपी ने आवाज़ लगाई और मैं भी उसी वक्त खाना छोड़ खड़ा हो चुका था। हवालदार ने डंडा घुमाया तो पर वो लगा बैंच पर। मेरी जान में जान आई। तब तक वो शख्स संभल गया था, वो उठा और उसने आव देखा ना ताव उस पुलिसवाले की पीठ पर एक घूंसा मार दिया। हम सब अवाक थे। दोनों एक दूसरे पर पिल पड़े। पुलिस की वर्दी का रौब तो होता ही है पर वो लड़का तो छोड़ने के मूड में था ही नहीं। रोता जा रहा था और मारता जा रहा था। पुलिसवाला भी मार रहा था पर कम। हम बीच बचाव करने लगे। तब जाकर मामला शांत हुआ। लेकिन पुलिसवाले पर हाथ उठाना तो अपराध है। पुलिस की वर्दी पहनकर दलाली करना भी तो गुनाह है, अपराध है। उस हवलदार के साथ आए ऑफिसर ने जेल में बंद करने की धमकी दी। मैंने उस ऑफिसर से एक बात पूछी कि यदि यहां खाना-पीना मना है तो ये बंद क्यों नहीं होते? उसने मेरा परिचय पूछा, मैंने बताया तो उस ने सब को इशारे से जाने के लिए कह दिया। फिर मेरे से मुखातिब होकर कहने लगा कि आप यहां क्यों आते हो, जब सूफी हो तो कहीं और भी तो खाना खाया जा सकता है। मैंने कहा कि घर के रास्ते में था इसलिए रुक गया पर उसका इशारा समझ वहां से रुखसत हो लिया।
अगली बार जाने पर पता चला कि उस रात वो एटा वाला आदमी तभी चला गया था। पुलिस ने यहां पर तो कुछ नहीं कहा था, आगे कोई नहीं जानता। पूरे समय पुलिस मौजूद रही और रात भर के लिए सभी ढाबे और स्टॉल बंद करवा दिए गए। जो हवलदार पिटा था वो उसी जगह पर बैठकर दारू पी रहा था, जहां पर उसने उस आदमी को मारा था और सारी रात बड़बड़ाता रहा।

जारी है...
(अगली बार ज्यादा पीने के बाद नौटंकी करने वालों पर)

आपका अपना
नीतीश राज

11 comments:

Smart Indian said...

इस सबके बावजूद कुछ लोगों को दिन-बा-दिन बढ़ते असंतोष पर आश्चर्य होता है?

योगेन्द्र मौदगिल said...

देश भर में यही स्थिती है..
बस कहीं कम कहीं ज्यादा...
लाइलाज...........

Anil Pusadkar said...

usi jagah hawaldaar ka daaru pina, pure system ko benaqab kar rahe ho bhaisaab

रंजू भाटिया said...

पुलिस वालो का अपना राज है..रोज़ इस तरह पी के अजीब सी हरकते करते दिखाई देते हैं टीवी पर ..

seema gupta said...

जो हवलदार पिटा था वो उसी जगह पर बैठकर दारू पी रहा था, जहां पर उसने उस आदमी को मारा था और सारी रात बड़बड़ाता रहा।

" very strange, khan khan pr kya kya hotta hai, itna kuch jo strange hai, ajeeb sa hai nya sa lgtaa hai pr aisa kerne walon ko koee jijek nahee sharam nahee, nice article to share with us. waiting for next ..."

Regards

डॉ .अनुराग said...

हर जगह यही हाल है बस फर्क नाम का है.....

जितेन्द़ भगत said...

शुरू में तो लगा कि‍ आप भी पीते होगे। फि‍र देखा कि‍ आप ख्‍वामख्‍वाह उस जगह का शि‍कार होते-होते रह गए।
अगली कड़ी से जानने की उत्‍सुकता है।

Unknown said...

@पुलिसवाले पर हाथ उठाना तो अपराध है। पर पुलिस की वर्दी पहनकर दलाली करना भी तो गुनाह है, अपराध है।
मेरे विचार में पुलिस की वर्दी पहनकर दलाली करना ज्यादा गंभीर गुनाह है, न बख्शा जाने वाला अपराध है. कोई आम आदमी पुलिस पर हाथ नहीं उठता, यह कभी कभी हो जाता है, और होता भी तब है जब पुलिस का दुर्व्यवहार सीमा से बाहर हो जाता है.

Nitish Raj said...

धन्यवाद जितेंद्र भाई मैं यहां पर था नहीं दो दिन पहले ही लौटा हूं जल्द ही अंतिम पोस्ट लिख दूंगा। आपने याद दिलाया इसके लिए शुक्रिया

राज भाटिय़ा said...

भाई माफ़ी चाहता हू, आप की कई पोस्ट छुट गई, बस मेरी सेटिंग मे कही गडबडी हो गई थी.

अजी भारतीया पुलिस, पुलिस नही पुलिस के नाम पर धव्वा हे.
धन्यवाद

राय साहब said...

पुरे देश का भी यही हाल है।